स्वास्थ्य बीमा के बारे में ये आपको जरूर जानना चाहिए
बिहार के दरभंगा के रहने वाले विश्वजीत मिश्र किडनी की किसी समस्या से ग्रस्त थे। घर का खर्च ही मुश्किल से चलता था ऐसे में इलाज का खर्च और भारी पड़ रहा था। ऐसे में उनके किसी जानने वाले बीमा एजेंट ने सलाह दी कि स्वास्थ्य बीमा ले लो तो इलाज का खर्च बीमा कंपनी भरेगी, तुम्हें बस एक छोटी राशि प्रीमियम के रूप में देनी होगी। विश्वजीत ने खुश होकर उसी एजेंट से दो लाख का बीमा करवा लिया। बीमा का सर्टिफिकेट मिलने के बाद लोगों की सलाह पर इलाज के लिए दिल्ली पहुंचे और एक नामी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हो गए। उनका कैशलेस कार्ड देखकर अस्पताल वालों ने भी चट भर्ती कर लिया और बीमा कंपनी को इलाज की सूचना देते हुए डिटेल भेज दिया मगर बीमा कंपनी ने किसी भी तरह के भुगतान से इनकार कर दिया। इस सब में दो दिन निकल गए थे और और अस्पताल ने विश्वजीत पर अपने पल्ले से भुगतान का दबाव बना दिया था। विश्वजीत फंस चुके थे।
ऐसा क्यों हुआ? आखिर बीमा कंपनी ने भुगतान से इनकार क्यों किया? दरअसल हमारे देश में स्वास्थ्य बीमा को लेकर जागरूकता का भयंकर अभाव है। बीमा से संबंधित नियम कानून इतने जटिल हैं कि आम लोग नियम पुस्तिका पढ़ने की जहमत भी नहीं उठाते। एजेंट को सिर्फ बीमा बेचने और अपना कमीशन हासिल करने से मतलब है इसलिए वह ग्राहक को पूरी जानकारी नहीं देता।
यहां हम आपको उन सामान्य बातों के बारे में बताते हैं जो स्वास्थ्य बीमा लेने के बाद आपको जाननी चाहिए:
कोई बीमा कंपनी अपने ग्राहक का बीमा करने से पहले यह सुनिश्चित करती है कि उसे पहले से कोई बीमारी तो नहीं है। अगर किसी व्यक्ति को पहले से कोई बीमारी है तो सामान्य तौर पर बीमा कंपनियां उस बीमारी के इलाज का खर्च पहले, दूसरे या कई मामलों में चार साल तक वहन नहीं करतीं। यह माना जाता है कि चूंकि आप उस बीमारी की चपेट में आ गए इसलिए बीमा लेकर इलाज का खर्च बीमा कंपनी पर थोपना चाहते हैं। ऐसे में कंपनी आपको इलाज का खर्च नहीं देती है।
भले ही बीमा लेने से पहले हुई स्वास्थ्य जांच में आप निरोग हुए हों मगर अधिकांश बीमा कंपनियां कुछ खास बीमारियों, जिनके इलाज का खर्च महंगा होता है, के लिए एक साल का वेटिंग पीरियड रखती हैं यानी जिस साल आपने बीमा लिया उस साल आपको इन विशिष्ट श्रेणी वाली बीमारियों के इलाज का खर्च नहीं मिलेगा भले ही आप बीमा लेने के बाद इनमें से किसी बीमारी की चपेट में आए हों।
बीमा लेने के साथ यह भाव भी मन में आता है कि अब हम कहीं भी इलाज करा सकते हैं और कंपनी सारा खर्च उठाएगी। इस गलतफहमी में न रहें। हर बीमा कंपनी के पैनल पर चुनिंदा अस्पताल होते हैं और सिर्फ इन्हीं अस्पतालों में इलाज कराने पर कंपनी आपको कैशलेस इलाज की सुविधा देती है।
अस्पतालों में अकसर मरीज के डिस्चार्ज के समय कमरे के किराए के भुगतान को लेकर मरीज के तिमारदारों और अस्पताल के कर्मचारियों में बहस होना आम नजारा है। दरअसल लोगों को पता नहीं होता कि उन्होंने जो बीमा लिया है उसके तहत कमरे का किराया एक सीमित राशि तक ही दिया जाता है। अधिकांश कंपनियां कुल बीमा राशि का 1 प्रतिशत प्रतिदिन कमरे के किराए के रूप में भुगतान करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी ने 2 लाख रुपये का बीमा लिया है तो कमरे का किराया बीमा कंपनी अधिकतम दो हजार रुपये प्रतिदिन ही भरेगी। होता ये है कि अस्पताल में जब आप पहुंचते हैं तो आपको बताया जाता है कि दो हजार तक के रेंज वाले कमरे खाली नहीं हैं, सिंगल रूम खाली है। आप सोचते हैं कि यार पैसा तो कंपनी को ही भरना है हम यही रूम ले लेते हैं और यहीं फंस जाते हैं। इसलिए इस नियम को जरूर गौर से पढ़ कर समझ लें।
किसी भी बीमा पॉलिसी में दावा भुगतान न करने से संबंधित नियमों को जरूर पढ़ लें इससे आपको यह पता चलेगा कि आपको कौन सी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेनी चाहिए और किससे किनारा कर लेना चाहिए।
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